हनुमान चालीसा का अर्थ

महत्त्व तो हमेशा से भक्ति का ही है जब भक्त भक्ति की पराकाष्ठा प्राप्त कर भगवान् में अपने को विलीन कर देता है तो उसमे ये क्षमता आ जाती है कि वो औरों को कुछ दे सके  वो गुरु पद को प्राप्त कर लेते है | फिर उनकी स्तुति करके जो भक्ति के पथ पर चलना चाहते हैं उस मार्ग को प्राप्त कर सकते हैं |

हनुमान चालीसा भी हनुमान जी की स्तुति है और उसके अंत में हम प्रार्थना करते हैं कि हमपर गुरु के नाते कृपा करना | क्योंकि गुरु ही एक मात्र ऐसे है जो शिष्य को अपने सामान करता है  | पारस भी लोहे को कंचन तो कर सकता है पर अपने सामान नहीं कर सकता | ये दयालुता केवल और केवल गुरु में ही होती है | हनुमान चालीसा में भी हम हनुमान जी की स्तुति करके यही मांगते हैं की हमें रघुवीर यानी प्रभु की भक्ति प्रदान करें भक्ति के मार्ग पर हमें हाथ पकड़ कर ले चलें | हमारे अंतर में भी आपकी तरह रघुबीर का वास हो जाए |

प्रथम दोहे में हम कह रहे हैं :

                "श्री गुरु चरण सरोज रज निज मनु मुकुरु सुधारि| बरनऊँ रघुबर बिमल जसु जो दायक फल चारि" |

अर्थात आप जैसे गुरु की चरण रज से अपने मन को पवित्र 
कर मैं भी श्री रघुबीर के यश का वर्णन कर करूँ जो धर्म अर्थ काम मोक्ष रूपी चरों फल देने वाला है.

"बुद्धि हीन तनु जानिके सुमिरों पवन कुमार| बल बुद्धि विद्या देहु मोहि हरहु कलेश विकार ||
अर्थात हे पवन कुमार मैं आपका स्मरण करता हूँ मुझे बलहीन जान कर मुझ पर कृपा कर मुझे ल बुद्धि विद्या प्रदान करें और मेरे दोषों का नाश करें.

इस तरह हनुमान चालीसा में शुरुवात से लेकर अंत तक उनसे सिर्फ भक्ति का मार्ग प्रशस्त करने की प्रार्थना की है इसीलिए इसका महत्त्व है की हनुमान जी को मन में गुरुपद पर आसीन करके जब हम उनकी स्तुति करते हैं तो हमारे सारे दोषों को वो हर कर हमें भक्ति के मार्ग पर प्रशस्त कर देते हैं |

                                                                        "राधे राधे"

 
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